जब युद्ध में खून की जगह चढ़ाया गया नारियल पानी—कहां, क्यों और कैसी रही सफलता?

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आज वर्ल्ड कोकोनट डे है और इसी बहाने उस कहानी पर फिर से बात हो रही है जिसमें युद्ध के दौरान आपात स्थिति में नारियल पानी को नसों में चढ़ाकर जान बचाने की कोशिश की गई थी। लिंक में बताए गए इस किस्से ने लोगों को चौंकाया, पर इसके पीछे की मेडिकल सच्चाई जानना भी उतना ही ज़रूरी है।

 द्वितीय विश्व युद्ध का किस्सा

रिपोर्ट्स बताती हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय कुछ जगहों पर जब सलाइन या मानक IV फ्लूड नहीं मिला तो डॉक्टरों ने सीमित समय के लिए सीधे नारियल पानी से मरीजों को हाइड्रेट करने का प्रयोग किया। वजह यह थी कि सही उम्र के हरे नारियल के अंदर का पानी सामान्यतः स्वच्छ रहता है और बिना खोले तकरीबन स्टेराइल माना जाता है।

 वियतनाम क्षेत्र में आपात प्रयोग

कुछ स्रोतों में उल्लेख है कि दक्षिण-पूर्व एशिया और वियतनाम के युद्धकालीन हालात में, दूर-दराज़ इलाकों के अस्पतालों ने कमी के वक्त नारियल पानी को अस्थायी IV फ्लूड की तरह आज़माया। यह उपयोग भी सीमित, अल्पकालिक और संसाधन न मिलने पर अंतिम विकल्प के रूप में किया गया बताया जाता है।

 वैज्ञानिक सबूत क्या कहते हैं

अमेरिकन जर्नल ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन में 2000 के केस-रिपोर्ट में सोलोमन आइलैंड्स के एक मरीज को अल्पकाल के लिए नारियल पानी IV देने का सफल ज़िक्र है। पुराने रिकॉर्ड और अध्ययन यह भी बताते हैं कि 1940–50 के दशक में थाईलैंड व अन्य जगहों पर फ़िल्टर किए गए नारियल पानी के छोटे-छोटे इन्फ्यूज़न क्लीनिकली आज़माए गए थे।

 क्या यह खून का विकल्प है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि नारियल पानी खून या प्लाज़्मा का विकल्प नहीं, सिर्फ तरल की कमी पूरी करने वाला आपातकालीन उपाय हो सकता है। इसमें सोडियम-पोटैशियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं, पर अनुपात खून जैसा नहीं होता, इसलिए लंबे समय या नियमित उपयोग की सलाह नहीं दी जाती।

 आज की सीख

खासकर शहरों और सामान्य हालात में अस्पताल-ग्रेड सलाइन/रिंगर्स जैसे IV फ्लूड ही मानक और सुरक्षित माने जाते हैं। नारियल पानी पीने के लिए अच्छा है, पर नसों से चढ़ाना केवल दूरस्थ इलाकों में, बहुत जरूरी हालत में और बहुत कम समय के लिए ही संभव विकल्प रहा है।

 

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